कविता : एक स्त्री की दर्द / मेनटेन नही रह पाती है !

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लेख –– मेनटेन नहीं रह पाती हैं !

पूरा घर समेटते समेटते ,
खुद बिखर सी जाती हैं !
“हा” अब वो औरतें मेन्टेन नहीं रह पाती हैं !
आधी रात में भी
दूध की बोतलों से बतियाती हैं !
एक आवाज पर
गहरी नींद छोड़ आती हैं !
टिफिन के पराठों संग
स्कूल पहुँच जाती हैं !
“हा” अब वो औरतें मेंटेन नहीं रह पाती हैं !
कमर दर्द, पीठ दर्द
हस के टाल जाती हैं !
जूड़े में उलझी हुई
लटों को छुपाती हैं !
हल्दी लगे हाथों को
साड़ी में छुपाती हैं !
“हा” अब वो औरतें मेंटेन नहीं रह पाती है !

सभी पूज्य गृहणियों को समर्पित

बिना
अभिनेत्री BJP

बीना – महिला मोर्चा अध्यक्ष (खजनी – गोरखपुर)

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